Tuesday, March 2, 2010
मेरे सब्र का न ले इम्तिहान मेरी खामोशी को सदा न दे
मेरे सब्र का न ले इम्तिहान
मेरी खामोशी को सदा न दे
जो तेरे बगैर न जी सके
उसे जीने की तू दुआ न दे ,
तू अज़ीज़ दिल -ओ- नज़र से है
तू करीब रग -ओ- जान से है
मेरे जिस्म -ओ- जान का ये फासला
कही वक़्त और बढ़ा ना दे
तुझे भूल के ना भुला सकू
तुझे चाह के भी ना पा सकू
मेरी हसरतों को शुमार कर
मेरी चाहतों का सिला ना दे ,
तुझे ग़र मिले कभी फुरसतें
मेरी शाम फिर से संवार दे
ग़र क़त्ल करना है तो क़त्ल कर
यू जुदाइयों की सज़ा ना दे ....!!!
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Hey Dimple,mark the Poet..
ReplyDeletekisi ke bgair jeene ki dua sach me kaun chahega.behad khoobsurat..apki sabse achhi post...
ReplyDeletejo dil ko chhoo jaye, wahi sabse accha hota hai. jaise ye kavita.
ReplyDeletebahut accha.
Really Wonderful...It really fills up blood in the veins of our life
ReplyDeleteAlso visit WWW.TARAMAITRAK.BLOGSPOT.COM
Thanks friends for loving it this much.
ReplyDelete:-)