Tuesday, March 2, 2010

मेरे सब्र का न ले इम्तिहान मेरी खामोशी को सदा न दे


मेरे सब्र का न ले इम्तिहान
मेरी खामोशी को सदा न दे
जो तेरे बगैर न जी सके
उसे जीने की तू दुआ न दे ,
तू अज़ीज़ दिल -ओ- नज़र से है
तू करीब रग -ओ- जान से है
मेरे जिस्म -ओ- जान का ये फासला
कही वक़्त और बढ़ा ना दे
तुझे भूल के ना भुला सकू
तुझे चाह के भी ना पा सकू
मेरी हसरतों को शुमार कर
मेरी चाहतों का सिला ना दे ,
तुझे ग़र मिले कभी फुरसतें
मेरी शाम फिर से संवार दे
ग़र क़त्ल करना है तो क़त्ल कर
यू जुदाइयों की सज़ा ना दे ....!!!

5 comments:

  1. kisi ke bgair jeene ki dua sach me kaun chahega.behad khoobsurat..apki sabse achhi post...

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  2. jo dil ko chhoo jaye, wahi sabse accha hota hai. jaise ye kavita.
    bahut accha.

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  3. Really Wonderful...It really fills up blood in the veins of our life
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  4. Thanks friends for loving it this much.
    :-)

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