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रात भर कल वह याद आये थे
दीप पलकों पे झिलमिलाये थे
में रहा हु गुलाब भी कुछ दिन
मुझपे तब खुशबुओं के साए थे
उनकी बातों से रंग झरता था
तितलियों कि ज़बान लाये थे
राह में कोई दरख़्त ना था
फिर मेरे सर पे किसके साए थे
मैंने लहरों पे ख्वाब रख - रखकर
पानियों पे नगर बसाये थे+
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