Sunday, June 13, 2010

कल रात


रात भर कल वह याद आये थे
दीप पलकों पे झिलमिलाये थे

में रहा हु गुलाब भी कुछ दिन
मुझपे तब खुशबुओं के साए थे

उनकी बातों से रंग झरता था
तितलियों कि ज़बान लाये थे

राह में कोई दरख़्त ना था
फिर मेरे सर पे किसके साए थे

मैंने लहरों पे ख्वाब रख - रखकर
पानियों पे नगर बसाये थे+

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